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Showing posts from January, 2020

Stage decor with eight oceans Toronto shivir

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Stage decor with eight oceans Toronto Shivir

Today’s centering Chopai is: एह जिन बांधे सो खोलहिं, तोलोना छूटे बंध ! एह विध खेल खावंदकी, तो औरों कहाँ सनंध कलस १/३५

Today’s centering Chopai is: एह जिन बांधे सो खोलहिं, तोलोना छूटे बंध ! एह विध खेल खावंदकी, तो औरों कहाँ सनंध  कलस १/३५ Eh Jin baandhe so kholhi , Unless the One who has created the web of world-game plan Himself untangles the complex puzzle of the worldly drama, Toh lon naa chhute bandh l One cannot hope to get out of this great entanglement (mess). Eah vidh khel khaavand ki, Even the revered Devtas, angels, Brahma, Vishnu, Mahesh also are all totally bewildered. None can solve the puzzle of dreamy creation. To auron kahaan sanandh ll Then what to talk of ordinary mortals (humans)! This chopai teaches a few points: 1. Humbleness: Recognizing limitations of our human intellect in fully understanding the universe and the Ultimate Reality. 2. Importance of having immovable rocklike faith that I am the soul of the Supreme Lord who is showing me this world drama. This opens the door of Paramdham Getting into our blissful love state - Nij -Ananda is possible by bu...

Today’s Prannath Wani Manthan

Today's Prannath Wani Manthan: पतिव्रता पणे सेविए, न थाय वेश्या जेम | एक मेलीने अनेक कीजे, तेणी थाय धणवट केम || किरंतन १२८/४४ परमात्मा का सेवन, उन्हें अपनी आत्मा का धणी समझ कर करना चाहिए | उनसे ऐसे अनन्य भाव से प्रेम करना चाहिए, जैसे संसार में एक आदर्श पत्नी अपने पति से करती है | वेश्या की तरह अप्रामाणिक व्यवहार करने से प्रेम का सच्चा सेवन नहीं हो सकता | प्रेम की खोज में जो एक परमात्मा की पहेचान कर के उन पर पूर्ण विश्वाश और श्रध्दा नहीं रखता, और अपने जीवन व्यवहार में जो नाना प्रकार के संसारी प्रलोभनों की परिपूर्ति में ही प्रेम खोजते रहता है, या लौकिक दिखावे का धर्म पालन करके परमात्मा के प्रेम की उपलब्धि का ढोंग करता रहता है, उस को परमात्मा का प्यार कैसे मिल सकता है? जब तक पत्नी (आत्मा) अपने पति रूप (परमात्मा) को अपना दिल पूर्णतः नहीं दे देती, अपना सर्वस्व समर्पण का भाव प्रगट नहीं करती, तब तक उसे अपने धणी की धणवट का, अर्थात, उनकी मेहेर या प्यार की अनुभूति कैसे हो सकती है? English: Pativrata pane seviye, Na thaaye veshya jem | Ek meli ne anek kije, Teni thaay dhanva...

बढ़िया । पतंगोत्सव की शुभ कामना ।

बढ़िया । पतंगोत्सव की शुभ कामना । इसी संदर्भ में एक जागनी प्रयोग हम सब कर सकते हैं : यदि अपने भीतर में ईर्ष्या, प्रमाद, कायरता, डर, मिथ्या अहंकार, लोभ, काम क्रोध, किसी के भी प्रति घृणा , बदले की भावना आदि नकारात्मक भाव होने का आपको स्वीकार है, तो उन सभी को आज अपनी अपनी पतंग पर लिख दीजिए। फिर पतंग को आकाश में उड़ाइए। फिर किसी दूसरे से पेच नहीं लड़ाना है । किसी और की पतंग नहीं काटनी है । बस, अपने हाथ को खुला कर लेना है, पतंग के धागे को हाथ से छोड देना है । फिर देखते रहिए, कि पतंग के साथ साथ ऊस पर लिखे हुए ईर्ष्या, प्रमाद, कायरता, डर, मिथ्या अहंकार, लोभ, काम क्रोध, घृणा आदि सभी नकारात्मक भाव भी आप से दूर दूर उड़ जा रहे हैं । दूर से दूर ....नज़र से ग़ायब हो रहे हैं। आप अपने आप में हल्केपन का एहसास कर रहे है। चेहरे पर ख़ुशियों के आँसू । भीतर का आसमान निर्मल हो रहा है । इसी अवकाश में प्रेम, आनंद, शांति, एकदिली का मोहोल तैयार हो रहा है। अब आप भी - भीतर से बाहर तक - चिल्ला रहे हैं- काटी....काटी...काटी! नकारात्मक एमोसंस की पतंग को अपने आप से काट दी! काट दी! हास...बड़ा अच...