बढ़िया । पतंगोत्सव की शुभ कामना ।
इसी संदर्भ में एक जागनी प्रयोग हम सब कर सकते हैं :
यदि अपने भीतर में ईर्ष्या, प्रमाद, कायरता, डर, मिथ्या अहंकार, लोभ, काम क्रोध, किसी के भी प्रति घृणा , बदले की भावना आदि नकारात्मक भाव होने का आपको स्वीकार है, तो उन सभी को आज अपनी अपनी पतंग पर लिख दीजिए।
फिर पतंग को आकाश में उड़ाइए। फिर किसी दूसरे से पेच नहीं लड़ाना है । किसी और की पतंग नहीं काटनी है । बस, अपने हाथ को खुला कर लेना है, पतंग के धागे को हाथ से छोड देना है ।
फिर देखते रहिए, कि पतंग के साथ साथ ऊस पर लिखे हुए ईर्ष्या, प्रमाद, कायरता, डर, मिथ्या अहंकार, लोभ, काम क्रोध, घृणा आदि सभी नकारात्मक भाव भी आप से दूर दूर उड़ जा रहे हैं । दूर से दूर ....नज़र से ग़ायब हो रहे हैं।
आप अपने आप में हल्केपन का एहसास कर रहे है। चेहरे पर ख़ुशियों के आँसू । भीतर का आसमान निर्मल हो रहा है । इसी अवकाश में प्रेम, आनंद, शांति, एकदिली का मोहोल तैयार हो रहा है।
अब आप भी - भीतर से बाहर तक - चिल्ला रहे हैं- काटी....काटी...काटी! नकारात्मक एमोसंस की पतंग को अपने आप से काट दी! काट दी! हास...बड़ा अच...