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खोजी खोजे बाहेर भीतर, ओ अंतर बैठा आप | सत सुपने को पारथीं पेखे, पर सुपना न देखे सख्यात || किर २/५

आज का श्री प्राणनाथ वाणी मंथन खोजी खोजे बाहेर भीतर, ओ अंतर बैठा आप | सत सुपने को पारथीं पेखे, पर सुपना न देखे सख्यात || किरनतन २/५                आत्म-खोजी साधक लोग पर-ब्रह्म (सुप्रीम बीइंग) को या तो इस परिवर्तनशील ब्रह्मांड में या अपने भीतर (पिंड में) खोजते रहते है । स्वप्न बुध्धि के प्रभाव में उन्हें आंशिक अनुभूति पूर्ण नजर आती है और प्रतिबिंबि को ही वे वास्तविकता समझ लेते हैं |                लेकिन वह पर-ब्रह्म तो भीतर में होने वाली अनुभूतियों एवं सृष्टि में बाहर प्रत्यक्ष रूप में होने वाली अनुभूतियों से अलग ही है | वह अपने पूर्ण 'शुध्ध साकार' स्वरुप से उस परमधाम में स्थित है, जहांसे वे यह जगत खेल दिखा रहे हैं | अर्थात, उनका पूर्ण सत-चिद-आनंद, अनंत और स्व-लीला अद्वैत स्वरुप इन सभी अनुभूतियों से बहुत दूर है ।                वास्तविकता तो यह है कि सत्य (नित्य-अस्तित्ववान) ब्रह्मात्माएं इस अवास्तविक सांसारिक स्वप्न को परे से, अर्थात, अपने परमधाम से देख रही हैं |...