खोजी खोजे बाहेर भीतर, ओ अंतर बैठा आप | सत सुपने को पारथीं पेखे, पर सुपना न देखे सख्यात || किर २/५

आज का श्री प्राणनाथ वाणी मंथन

खोजी खोजे बाहेर भीतर, ओ अंतर बैठा आप |
सत सुपने को पारथीं पेखे, पर सुपना न देखे सख्यात || किरनतन २/५
               आत्म-खोजी साधक लोग पर-ब्रह्म (सुप्रीम बीइंग) को या तो इस परिवर्तनशील ब्रह्मांड में या अपने भीतर (पिंड में) खोजते रहते है । स्वप्न बुध्धि के प्रभाव में उन्हें आंशिक अनुभूति पूर्ण नजर आती है और प्रतिबिंबि को ही वे वास्तविकता समझ लेते हैं |
               लेकिन वह पर-ब्रह्म तो भीतर में होने वाली अनुभूतियों एवं सृष्टि में बाहर प्रत्यक्ष रूप में होने वाली अनुभूतियों से अलग ही है | वह अपने पूर्ण 'शुध्ध साकार' स्वरुप से उस परमधाम में स्थित है, जहांसे वे यह जगत खेल दिखा रहे हैं | अर्थात, उनका पूर्ण सत-चिद-आनंद, अनंत और स्व-लीला अद्वैत स्वरुप इन सभी अनुभूतियों से बहुत दूर है ।
               वास्तविकता तो यह है कि सत्य (नित्य-अस्तित्ववान) ब्रह्मात्माएं इस अवास्तविक सांसारिक स्वप्न को परे से, अर्थात, अपने परमधाम से देख रही हैं | जो स्वप्न के बाहर है, वही स्वप्न के बाहर की हकीकत जान सकता है | लेकिन स्वप्न-रूप क्षर जगत की व्यष्टि चेतनाएं (जीव) या समष्टि चेतना (आदि नारायण) इस अक्षरातीत परब्रह्म की वास्तविकता को नहीं जान/देख पाती ।
               यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि आध्यात्मिक अनुभूति की गुणवत्ता साधक की जागरूकता के स्तर पर निर्भर है । और तारतम वानी विश्व की सभी ज्ञान परंपराओं को, तीन आध्यात्मिक स्तरों को स्पष्ट करते हुए, एक माला में पिरो देती है | यह तीन स्तर है - क्षर (स्वप्न), अक्षर (जागृत) और अक्षरातीत (पूर्ण प्रेम) । हम अपने आप को जिस स्तर के ज्ञान और भावना से जोड़ लेंगे, उसी स्तर की हमारी जागरूकता भी बनेगी |
                हां, जो साधक केवल क्षर स्तर तक ही उठते हैं, वे क्षर (स्वप्न) वास्तविकता की उच्चतम उपलब्धि पा सकते हैं | जो लोग अक्षर की तलाश करते हैं, वे उस स्तर की जागरूकता को प्राप्त हो सकते हैं । लेकिन, बिना तारतम ज्ञान के प्रकाश के और अनन्य प्रेम लक्षणा भक्ति के, कोई भी अक्षरातीत को नहीं पा सकता । इस चोपाई का उद्देश्य यह बात समझाने का है |
               आमतौर पर सुन्दरसाथ जी एवं प्रचारक वर्ग एक सबसे महत्वपूर्ण बिंदु को भूल जाते हैं कि तारतम को एक 'अभिन्न'  ज्ञान (इंटीग्रल नोलेज) है | खीर-नीर का निवेरा करके यह अद्वैत में मिलाने वाला - एकरस करने वाला है, पूर्णता (होलनेस) के स्वरुप को इसी पल उपलब्ध करने वाला है | भविष्य में नहीं | परंपरागत, हम तारतम को बहिष्करण (छटनी) के रूप में ही स्थापित करने की प्रवृत्ति को देखते हैं। इसलिए सारा समाज भ्रमित अवस्था में स्व को विभाजित करते रहने की प्रवृत्ति में मग्न है | हम 'डिवाइडेड सेल्फ' की स्थिति में जागनी लीला का सुख लेना चाह रहें है, या पुरानी परिपाटी से मोहित वाणी ज्ञाताओं द्वारा ऐसा बताया जा रहा है |  'बहिष्करण' से मेरा मतलब है कि पर-आत्मिक (परमधाम के) स्तर के अलावा किसी भी निम्न स्तर के अनुभवों की पूर्णत अवहेलना करना !
               जब तक आत्मा इस स्वप्निल वास्तविकता के भौतिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक शरीरों का उपयोग करते हुए खेल का अनुभव कर रही है, तब तक उन सभी (स्थूल, सूक्ष्म, कारण) स्वप्न-अस्तित्वों के साथ पूर्ण संरेखण (एलाइनमेंट करना ही होगा - यदि वास्तविकता के अंतिम अक्षरातीत स्तर पर जागना है तो |
               तारतम ज्ञान हमें पूर्णता (होलनेस) का अनुभव देता है | यह हमारे पूरे वर्तमान जीवन के अनुभव में आमूल बदलाव ला कर फिर अपने मूल स्वरुप में जाग्रत करने के लिए ही अवतरित हुआ है । सब विध का औषध है तारतम ! है न? यह मास्टर मेडिसिन है, जो सब कुछ ठीक करती है ।  हाँ, पर-आत्मिक जागनी के साधन के रूप में तारतम को ग्रहण करने से, बाकी सब मनोरथ सहज ही पूर्ण हो जाते हैं | लेकिन इसे सिर्फ पर-आत्मिक दवाई समझना और समझाना हमारी कम-अकली है |
               इसलिए, जिन सुन्दर साथ ने तारतम को अपने दिल की गेहेराइयों में धारण कर लिया है, वे अपने दिलों के भीतर और बाहर - हर जगह ब्रह्मांड में भी अपने पर ब्रह्म धनी के प्रेम का अनुभव कर सकते हैं | और साथ साथ चितवन में परमधाम के स्वर्रोप और समग्र शोभा का भी साक्षात्कार कर सकते हैं | इस प्रकार, तारतम की शक्ति हमें वास्तविकता के तीनों स्तर की अनुभूति भीतर, बाहर और परे की भी करा सकती है ।
                संक्षेप में, बिना तारतम ज्ञान के, परब्रह्म यानि अक्षरातीत स्तर की पूर्ण खोज संभव नहीं है | साधक को भीतर और बाहर की दोनों ही अनुभूति होती है, लेकिन स्वप्न की | परे का तो प्रश्न ही नहीं उठता | अर्थात, सुप्रीम की 'समग्रता' की अनुभूति तो इनके लिए बहुत दूर की बात है।

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Khoji khoje baaher bhitar,
O antar baitha aap !
Sat supne ko paar thi pehle,
Supna na dekhe sakshaat ll
Kirantan 2/5

                The seeker search for Par-Brahman (Supreme Being) either out in the cosmos or within himself.  But that Supreme Being is distinct, far away from both.  The Real - ever existent souls are watching the unreal worldly dream from the Beyond, i.e., the Abode of Par-Brahman.  But the dream-forms (individually or collectively) cannot see (be the observer of) the Ultimate Reality.   

                Discussion: Quality of realization depends on seeker's level of awareness.  Tartam Wani, in concert with world wisdom traditions, further clarifies the three levels of spiritual wisdoms - the Kshar level, the Akshar level and the Aksharateet level.  So, the level of awareness depends on which of the three levels one rises and connects to.
                Yes, those seekers who only rise to Kshar level, do find the highest of Kshar (dream) reality. And, those who seek Akshar, they attain that that level of awareness.  But, without receiving the light of Tartam Wisdom, one cannot attain the Aksharateet level.  This is the point made by this chopai.
                The most important point sundarsath ji and preachers commonly miss is not realizing Tartam as an 'integral' wisdom.  Traditionally, we see the tendency of establishing Tartam as exclusionary.  By 'exclusionary', I mean total disregard of any level of experience other than that of Par-Atmik (Paramdham) level.
       As long as the soul is using the physical, psychological, emotional bodies of this dream reality to rise to the ultimate Aksharateet level of Reality is possible with all of them in full alignment.  Tartam gives us experience of wholeness.  So our entire life experiences are transformed.  Sab vidh ka aushadh! It is the master medicine that cures all and everything.
                So, sundarsathji who have held Tartam Wisdom at the core of their heart, can experience Beloved Par-Brahman (His Love) within their hearts and out - everywhere in the cosmos, and also in His totality of Paramdham, in their peak experience.  The power of Tartam lights up all of the three levels of Reality within, out and beyond.
                In essence, the seeker's search for Par-Brahman (Totality of Aksharateet level) is always incomplete, either outside in the cosmos (the macrocosm of the transient world) or by going within himself (in the inner cosmos, the microcosm).  But the Supreme's 'totality' is far away from both of these transient entities.   

सदाआनंदमंगल मैं रहिए ।
सप्रेम परनामजी
नरेंद्र पटेल
लॉर्ड प्राण नाथ डिवाइनसेंटर, मेकन, GA
SHRI PRAN NATH GLOBALCONSCIOUSNESS MISSION

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