“अनंत परात्पर परब्रह्म हर नयी पूर्णता से परे (बियोंड) है ।”
"अनंत परात्पर परब्रह्म हर नयी पूर्णता से परे (बियोंड) है ।"
Question: घर श्री धाम अने श्री कृष्ण,
ए फल सार तणो तारतम | तारतमे अजवालूं अति थाय, आसंका नव रहे मन मांहें।।प्रकाश ३३/२३ Isn't it saying Ghar Shri Dham + Shri Krishna = fruit or summary of the Tartam ?
Answer:
सच, लेकिन यदि इतनी बात से हमारा काम बन जाता तो फिर वाणी बीतक की इतनी सारी बातों की आवश्यकता ही क्या थी? निम्न लेख को एक-दो बार ध्यानपूर्वक पढ़ने से बात स्पष्ट हो जानी चाहिए ।
तारतम का फल या सार है, परमधाम और श्री कृष्ण जी की वास्तविकता की पहचान । और परात्पर परब्रह्म की पहचान तो एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है , जो कभी पूरी नहीं होती।
सार ग्रहण करना ठीक है, लेकिन सार का सार क्या है?
तारतम सच है, लेकिन तारतम का तारतम क्या है?
तारतम तेज पूर्ण प्रकाश है, लेकिन उस प्रकाश का प्रकाश क्या है?
पार या परे कि महिमा है, लेकिन सब से परे क्या है? परे का अर्थ ही होता है, उत्तरोत्तर नयी पूर्णता की ओर जाना, आगे बढ़ते रहना ।
अनंत परात्पर परब्रह्म हर नयी पूर्णता से परे (बियोंड) है, जो शब्दों द्वारा समझे तो जा सकते हैं, लेकिन है शब्दातीत। और शब्दातीत को पकड़े तो कैसे पकड़े?
तारतम वाणी इसलिए हमें नए नए विचार करने को प्रेरित करती है।
"नित्य नई चरनी चढ़े, नये नये करे विचार ।" यह वर्तमान जागनी लीला का मंत्र होना चाहिए।
इन चोपाईयों पर ध्यान दें :
अब कहूं इन रास को सार, जो तारतम वचन है निरधार। तारतम सार जागनी विचार, सबको अर्थ करसी निरवार।।प्रकाश ३३/२६
तारतम का जो तारतम, अंग इन्द्रावती विस्तार। पैए देखावे पार के, तिन पार के भी पार।।कलश २३/७२
मारा साथ सुणो एक वातडी, कह्यो सतनो में सार। ए सारनो सार देखाडी, जगवुं ते मारा आधार।। कलश १/२
रासनो प्रकास थयो, ते प्रकासनो प्रकास।
ते ऊपर वली कलस धरूं, तेमां करूं ते अति अजवास।।कलश १/१
अब मूल प्रश्न पर पुनः ध्यान दें और तारतम वाणी का मंथन करते हैं:
श्री मुख तारतम प्रकाश वाणी में श्री मद भागवत का सार समझाते हुए महामति जी कहते हैं कि, "श्री कृष्ण नाम से हुई लीलाओं के परम गोपनीय रहस्य शब्दों में व्यक्त नहीं हो सकते | यह तो प्रियतम धणी ने परमधाम की निस्बत जान कर हम सुंदरसाथ को जगाने के वास्ते प्रगट किये हैं | "
तारतम ज्ञान की दो सारभूत उपलब्धियां याद दिलाते हुए कहा है:
घर श्री धाम अने श्री कृष्ण,
ए फल सारतणो तारतम।
तारतमे अजवालूं अति थाय,
आसंका नव रहे मन मांहें।।प्रकाश गु. ३३/२३
अर्थात, "जहां ब्रह्मात्माओं के आधार अक्षरातीत रहते हैं, उस दिव्य घर परमधाम की लीलाओं का रसानंद तथा श्री कृष्ण नाम से हुई लीलाओं के रहस्यों का स्पष्टीकरण – यह दो तारतम ज्ञान की अनुपम उपलब्धियां है, जिससे ज्ञात होता है कि परब्रह्म परमात्मा तो कृष्णावतारी वैकुंठ वासी विष्णु भगवान और गोलोक वासी श्री कृष्ण से भी परे हैं | "
फिर समझाया है कि "वैसे तो श्री कृष्ण नाम से होने वाली प्रेम लीलाओं के परम गोपनीय रहस्य शब्दों में व्यक्त नहीं हो सकते, लेकिन ये तो प्रियतम धणी द्वारा अपनी परमधाम की निस्बत जान कर हम सुंदरसाथ को जगाने के वास्ते प्रगट किये जा रहे हैं |" (प्रकाश गु. 33/6, 22)
इस प्रकार, श्री कृष्ण जी की व्रज-रास लीला, वर्तमान जागनी लीला एवं परमधाम लीला इन सभी का तारतम्य पूर्ण संबंध (सामंजस्य, इंटीग्रेशन) स्पष्ट किया है |
श्रीप्राणनाथ जी ने इस गहरे रहस्य का खुलासा कर दिया कि "कृष्ण और मुहम्मद वह विश्व-वन्दनीय कॉस्मिक तेज हैं, जो समस्त मानव जाति को धार्मिक प्रेरणा देने के लिए परब्रह्म परमात्मा के द्वारा प्रकट किये गये हुकम के स्वरूप हैं । जो गोलोकी कृष्ण 'राम' की तरह या तो महापुरूष समझे जाते रहे या विष्णु के अवतार मात्र, वे महामति वाणी में एक सार्वजनीन तेज (कॉस्मिक कृष्ण) बनकर सामने आ गये, जो सृष्टि के बनाने वाले (गोलोकी) स्वरूप हैं, और अन्त में भक्तों को अखण्ड करने वाले हैं | "
यही बात परम जिज्ञासु राजा परीक्षित को सिखापन देने के लिए शुकदेवजी ने गोलोकी श्री कृष्ण के संदर्भ में कही, जिस का संदर्भ महामति ने प्रकाश ग्रंथ में 'जीव को सिखापन' देने के लिए उदाहरण के रूप में प्रकाश हि.20/5,6,8 में दिया है | जिस में शुकदेव जी कहते हैं (ध्यान रहें महामति सिर्फ शुकदेव जी के वचन का सार दोहरा रहे हैं):
बड़ी मत सो कहिए ताए,
श्री कृष्ण जी सों प्रेम उपजाए |
बिना श्री कृष्ण जी जेती मत,
सो तूँ जानियों सबे कुमत |
श्रीकृष्ण सों प्रेम करे बड़ी मत,
जो पोहोंचावे अखंड घर जित |
परीक्षित को शुकदेव जी द्वारा दिए गए प्रबोध का दृष्टांत दे कर आगे प्रकाश हि. 20/17, 21, 26 की उपरोक्त चोपाईयां गोलोकी श्री कृष्ण से परे परमधाम के परब्रह्म पियूजी पर ध्यान केंद्रित करने को हमें प्रेरित करती है :
निजघर पिउ को लीजे प्रकाश,
ज्यों वृथा जाए एक श्वास |
आतम मेरी है सुजान,
अक्षरातीत निध करी पहचान ||
अखंड धाम धनी उजास,
जाग जागनी खेले रास |
प्रकाश गु. 33/6, 22 में श्री मद भागवत का सार समझाते हुए श्री कृष्ण लीला के रहस्य को स्पष्ट करते हुए कहा है:
"श्री कृष्ण नाम से हुई लीलाओं का रहस्य यथार्थ में शब्दों द्वारा कैसे व्यक्त हो सकता है? यह तो अपने घर परमधाम की निस्बत होने से अक्षरातीत धाम धनी ने स्वयं प्रगट किया है कि परब्रह्म तो वैकुंठ, नारायण (कॉस्मिक कृष्ण) और गोलोकी श्री कृष्ण से परे हैं | जहां अपने आधार अक्षरातीत रहते हैं, उस दिव्य घर परमधाम का ज्ञान और श्री कृष्ण लीला के रहस्य का स्पष्टीकरण यह दो बातें हमारे तारतम ज्ञान का फल है |"
यहाँ "घर श्री धाम अने श्री कृष्ण जी, ए फल सार तणो तारतम" का आधार ले कर श्री कृष्ण जी को परमधाम में दर्शाना हमारी चेतना के विकास के मिथिक लिटरल और एथनोसेंट्रिक स्तर पर तो ठीक लगता है। पर ऊँचे वैज्ञानिक, बहुलवादी और एकीकृत (इंटीग्रल, तारतम्य प्रकाश के) विकास स्तर पर हमारी नज़र नाम, भाषा आदि से परे हो कर गुण लक्षणों पर केंद्रित होने लगती हैं । शाब्दिक अर्थघटन से परे उठ कर चेतना एक से ऊँचे एक प्रेमानंद रस में मग्न हो जाती है ।
तारतम वाणी के अनुसार, कृष्ण-मुहम्मद-क्राइस्ट हुकम (श्री राज जी की इच्छा) के स्वरूप तो हो सकते हैं, पर हाकिम (परात्पर परब्रह्म) तो हुकम के छोटे-बड़े रूपों से परे, अक्षरब्रह्म और उस से भी परे, परमधाम स्थित है।
ठीक उसी प्रकार, परमधाम की श्यामा जी भी हुक्म की तीन सूरतों के रूप में लीला खेली/खेलती तो हैं, पर श्यामा जी स्वयं अपने शुद्ध साकार नूरी स्वरूप से तो अखंड अद्वैत परमधाम में ही है |
वाणी के बातिनी भीतरी मर्म को तार्किकता या गणित की फार्मूला द्वारा समझने से थोड़ा आधार तो मिलता है । लेकिन ये उपाय पर्याप्त नहीं होते। इन्हें अंतिम नहीं मान लेना चाहिए ।
"Spirituality can't be fully grasped mathematically. Nobody has yet invented a Spiritual Calculus, in terms of which we may talk coherently about the Supreme Reality or Supreme Being, and the present world, which is conceived as His Will (hukam) and manifestation."
Jagni is all about getting comfortable with paradox.
Sada Anand Mangal main rahiye
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