जागनी क्या है?


आज का वाणी चिंतन: जागनी क्या है?

कहे सुन्दरबाई अछरातीत से, खेल में आया साथ। दोए सुपन ए तीसरा, देखाया प्राणनाथ।।

श्री सुन्दरबाई की परात्मा में अवतरित श्री श्यामा जी कहती हैं कि अक्षरातीत के परमधाम से इस तीसरे खेल में सुन्दरसाथ ब्रह्मात्माएँ पधारी है। धाम धनी श्री प्राणनाथ जी ने ही मूल मिलावे में बिठा कर कालमयिक व्रज लीला और योगमायिक रास लीला दिखाई है और इस वक्त पुनः कालमाया में तीसरी जागनी लीला दिखा रहे हैं। 


इस कालमायिक खेल को जागनी लीला इसलिए कहा है क्यों कि इस में ब्रह्म वाणी के प्रकाश में परमधाम में हुए इश्क़ रब्द की पूर्ण सुध, व्रज और रास लीला की पूर्ण सुध, जागनी लीला के पूर्वार्ध, वर्तमान और उत्तरार्ध की सुध एवं परमधाम की सर्वांगीण सुध हो पाने की संभावना सहित दिखाया जा रहा है।


 "वर्तमान" शब्द से तात्पर्य सिर्फ वर्तमान घड़ी से नहीं, बल्कि चेतना की वह अवेयरनेस की अवस्था जिस में उक्त सब कुछ एकीकृत (इंटीग्रेट) हो कर नए नए रूप में घटित हो रहा है। चितवन में स्वलीलाद्वैत के प्रेमानंद की मस्ती में डूबे रहना जागनी है, चितवनमय अवस्था की पृष्ठभूमि में सांसारिक व्यवहार और कर्तव्य अंतिम होश पूर्ण साँस तक और होंश उत्साह पूर्वक निभाते रहना जागनी है।


लीला आनंद (व्यवहार में) और स्वरूपानंद(चितवन एकांत में ) - यह दोनों ही में संतुलित आवागमन होते रहने की अवस्था का नाम जागनी है। 


जागनी से तात्पर्य है बैलेंस, बैलेंस और बैलेंस । न कोई एलर्जी न कोई एडिक्शन । न कोई नकार न कोई आदत । पूर्ण स्वतंत्रता सहित परस्परावलम्बन का खेल यह जागनी है। यही अवस्था परात्म जागनी का प्रवेशद्वार है । 


सदा आनंद मंगल में रहिए 

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