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Showing posts from 2020

Heart-felt invitation : Four Day Special Satsung for Adult Sundarsath ((in Hindi) and Students of English speaking Sat-Chit-Anand Classes

 हार्दिक निमंत्रण  चतुर्दिवसीय ज़ूम सत्संग प्रौढ़ एवं मातापिता के लिए (हिंदी भाषा) एवं बाल युवा सत्संग (English)  डिसेम्बर २४-२७ शाम ८-९.३० बजे प्रतिदिन US EST निम्न झूम लिंक का उपयोग करें  Heart-felt invitation : Four Day Special Satsung for Adult Sundarsath ((in Hindi) and Students of English speaking Sat-Chit-Anand Classes When: ‪December 24-27‬ Daily : ‪8.00 -9.30 PM EST‬ (US) Please encourage others to participate. Two Classes will run as follow using Zoom platform: Children and Youth (English) Join Zoom Meeting https://zoom.us/j/97302254343?pwd=RFVlWjBocHNOekZNWk56MmE1N2FVdz09 Meeting ID: 973 0225 4343 Passcode: 1234 Adults and Parents (Hindi) Join Zoom Meeting https://zoom.us/j/92165696355?pwd=eGdBdU9JejF5OS9xWGczcXM5ZDdKQT09 Meeting ID: 921 6569 6355 Passcode: 0000 Sada Anand Mangal mein rahiye  Saprem Pranam ji

सुंदरसाथ का प्रश्न: अपने द्वारा किए गए अच्छे कर्म कहां तक जाते हैं कृपया थोड़ा मार्गदर्शन प्रदान करें l श्री चरणों में प्रणाम जी..

सुंदरसाथ का प्रश्न: अपने द्वारा किए गए अच्छे कर्म कहां तक जाते हैं कृपया थोड़ा मार्गदर्शन प्रदान करें l श्री चरणों में प्रणाम जी.. तारतम ज्ञान के प्रकाश बिना कर्मों की सीमा की बात तो हम सब समझते ही हैं । लेकिन कर्मों के सिद्धांत का जागनी लीला से "तारतम्य" न समझने की वजह से कई सुंदरसाथ का यह उत्तर रहता है कि: कर्मभूमी के कर्म, कर्मभूमी तक ही सीमित रहते है।" अपने जीवन अनुभव के आधार पर मेरा चिंतन इस प्रकार है । आशा करता हुँ सुंदरसाथ इसका हार्द ग्रहण करेंगे: आत्मसम्बन्धी श्री सुंदरसाथजी! हमारे कर्म जब आत्मस्थित हो कर , आत्म-भाव से होते हैं (करने नहीं पड़ते!), तब कर्म कर्म रहते ही नहीं, प्रेम लीला का स्वरूप धर लेते हैं। संकल्प की पवित्रता की बड़ी महिमा है। जैसे गोपियों ने व्रजमंडल में किया था । गोपियों के कर्म प्रेम सेवा के स्वरूप थे, तो आज जो कोई व्यक्ति द्वारा, ऊसी भाव से चित्त की एकाग्रता के साथ, अपने प्रेमानंद स्वरूप में ध्यान रख कर , जो कुछ भी सहज से होता है, वह सब धाम धणी के चरणों में पहुँचता ही है । इसलिए सुंदरसाथजी को अकर्मण्य हो कर कर्म न करने ...

All is well. श्री मुख वाणी चोपाई मंथन चितवन: Today’s Chopai from Shri Prannath Wani Shri Kuljam Swaroop -*मूने हुती नींदलडी, Mune huti nindaldi

All is well. श्री मुख वाणी चोपाई मंथन चितवन: Today’s Chopai from Shri Prannath Wani Shri Kuljam Swaroop *मूने हुती नींदलडी, Mune huti nindaldi, तमे सुती मूकी कां राते । tamey suti muki kaan raate! जागीने जोउं ता पीउजी न पासे, Jagi ne joun to piyuji na paase, पछे तो थासे प्रभाते ।। Pachhe to thaasey prabhaate!!* Essence भाव : हे धणी, स्वीकार है मुझे अपनी पिछली भूल का : मूने हुती नींदलडी, Mune huti nindaldi: O Beloved! I truly ACCEPT my lack of awareness and lack of appreciation while in your divine company. आप को मैं मिस कर रही हूँ; मंदिरिए कां न आवो मारे! : *तमे सुती मूकी कां राते । * Tamey suti muki kaan raate:  Now, I truly miss you O Beloved. How come YOU have abandoned me - Your loving Soul-in this play of duality? मैं जागनी प्रक्रिया में शामिल हूँ; इसी वक्त जाग कर देखूँगी अपने वर्तमान हाल को; ओहो, इस पल वो कहाँ चले गए ?! एक पल साथ, दूसरी पल अंतरध्यान ! हमेशगी का सानिध्य चाहिये मुझे तो : *जागीने जोउं तां पीउजी न पासे, * Jagi ne joun to piyuji na paase: ...

*Practice NOT “social” distancing, Do Practice “physical” distancing*

*Practice NOT “social” distancing, Do Practice “physical” distancing* While physical socialization combined with emotional and spiritual is the best, for now, We can still socialize- but without the “physical” element in it. One best way to socialize in the midst of epidemic is communicating through “social” media and* just say one simple mantra *to all in our life and strangers: “Darling! I am Here for You!” “मेरे प्यारे! मैं इस वक्त तुम्हारे साथ साथ खड़ा हूँ” “सदा आनंद मंगल में रहिए “ We know that God is always there for us as He loves us. So, it’s a smart idea to share that love to others. Pick up your phone and let them hear the mantra: “Darling! I am Here for You!” “मेरे प्यारे! मैं इस वक्त तुम्हारे साथ साथ खड़ा हूँ” “सदा आनंद मंगल में रहिए “ Then Feel the joy on their faces and the same getting reflected back to you. Yes, Social media has turned into “anti-social” media, yet with awareness, in the present time, we can truly make it “social “ media by sendin...

Meditation - Manubhai Patel

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Meditation  - Manubhai Patel

Virah, Kirantan 39 ~ Audio

There will be Wani gayan for 7-10 min, 20 min  wani charcha and 10 min discussion ,contemplating or meditation ending with arji.  Topic: Virah, Kirantan 39 Virah, Kirantan 39 Part-1 https://www.youtube.com/watch?v=fwYL5muinhw Virah, Kirantan 39 Part-2 https://www.youtube.com/watch?v=Q-B2qwnBPfY Sada Anand Mangal mein rahiye. Saprem Pranam ji

Auspicious Affirmations by Shri Prannath Ji

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Words of Wisdom

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सदाआनंदमंगल में रहिए । सप्रेमप्रणाम जी लॉर्ड प्राण नाथ डिवाइन सेंटर मेकन, जोरजिया, USA श्री प्राणनाथ वैश्विक चेतना अभियान   

जीव कर्ता कि भोक्ता?नित्य कि अनित्य?

जीव कर्ता कि भोक्ता?नित्य कि अनित्य? वाणी कहती है - जिन जानों शास्त्रोंमें नहीं, है शास्त्रोंमें सब कुछ ! सब श्यानों की एकमत पायी, पर अजान देखे रे जुदाई । यह हमारी (आत्म और संगी जीव चेतना की) जाग्रति की अवस्था पर निर्भर है कि हम वाणी और शास्त्रों को एक माला में पिरो सकते हैं या नहीं । निहसंदेह वाणी को शास्त्रों की हर बातों से विपरीत मान लेना हमारी भूल है। हम यह बहुत बड़ी कुसेवा करते है, जब हम पूज्य सरकार श्री या अन्य ज्ञानिजनों के शब्दों को जाहिरी रूप में जड़ता से पकड़ रख कर उनकी ढाल बना कर, उनके नामों का प्रयोग कर के अपने अहम को शराब पिलाते हुए वार्ता या बहश करते रहते हैं । और स्वयं अनुभूति की गहराई में जाने से डरते रहते हैं। सुंदरसाथ जब तक वाणी को integrated wisdom अर्थात् और सभी ज्ञान को एक तारतम्य शृंखला में रखने वाली महा सक्षम नहीं समझ पाएँगे, तब तक उसका वास्तविक रस अपने भीतर प्रगट नहीं कर पाएँगे । मेरा प्राणनाथ छटनी (परित्रानाय साधुनाम, विनाशयचदुश्कृतम) वाला नहीं, बल्कि सब को अपने प्रेम में लपेट लेने वाला है - वह साम्प्रदायिक नहीं है । वाणी क्षीर नीर का निवेरा तो करती है, लेकिन उ...

प्रश्न: & उत्तर: ~ सदाआनंदमंगल में रहिए ।

प्रश्न: बाहेर देखावे बंदगी, माँहें करें कुकर्म काम । महामारी पूछे ब्रह्मसृष्टि को, ए वैकुंठ जासी के धाम।।???? उत्तर: जो अंदर बाहर एक नहीं, वह कहीं नहीं जा सकता! उसे कोई भी सुख नहीं मिलता । ना वैकुंठ जा सकता है, ना ही कोई नित्यमुक्ति धाम या परम धाम ! सदाआनंदमंगल में रहिए । सप्रेमप्रणाम जी लॉर्ड प्राण नाथ डिवाइन सेंटर मेकन, जोरजिया, USA श्री प्राणनाथ वैश्विक चेतना अभियान   

ध्यान से पढ़ें, सोचें और समझें

प्यारे सुंदरसाथजी! ध्यान से पढ़ें, सोचें और समझें करोना महामारी के बीच बहुत सारी विविध भविष्य वाणियों की बातें विश्वभर में शेर हो रही है । सुंदरसाथ समाज में भी यह फैल रही है । जो विचारणीय है । सर्व प्रथम तो ऐसी बातें किसी भी धर्मग्रंथ या व्यक्तिविशेष द्वारा की गयी हो, हमारी आत्म जागनी में और उपस्थित महामारी के बीच इसकी कोई क़ीमत मुझे नज़र नहीं आती। हमारे लिए क़ीमत की बात यह है कि हम धनी के इल्म से अपनी बुद्धि को जाग्रत रखें, तन मन धन शक्ति को विवेक पूर्वक जब और जहां भी सम्भव हों, प्रेम सेवा में चैनलायज़ करें । और किसी भी भविष्यवाणियोंके चक्करसे मुक्त रहें ! ऐसी बातें बहुत सारे लोग लम्बे समय से करते आ ही रहे है । और जब भी ऐसी घटना होती है, हर सम्प्रदाय और तीर्थ स्थान वाला अपनी अपनी महिमा बढ़ाने ऐसी बातें मीडियामें प्रवाहित करता ही आया है । लेकिन क्या तारतम वाणी में तन, मन, जीव, आत्म स्तर की सेफ़्टी के लिए कम चेतावनियाँ दी गयी है? क्या हम आयी महामारी से भी गम्भीर चेतावनियों से कभी प्रभावित हुए है? वैज्ञानिकोंने भी समय समय पर ऐसी चेतावनियाँ पक्के प्रूफ़ के साथ दी तो है । पर स्वार्थ और अहम...

समस्त विश्व को बुध्धजी शाका ३४२ प्रारम्भ की बधाई हो |

समस्त विश्व को बुध्धजी शाका ३४२ प्रारम्भ की बधाई हो | आतम सम्बन्धी सुन्दरसाथ जी!  आज का दिन हम सब के लिए शुभ इसलिए हैं क्यों कि इस जागनी ब्रह्माण्ड में तारतम ब्रह्मज्ञान का बृहद प्रसार जन समाज में शुरू हुआ | हमें अपार आनंद है, कि छत्रसाल वेब सीरीज भी इस वर्ष संसार को भेंट होगी |  विश्व प्राणनाथ जी को और श्री कुलजम स्वरुप निहित तारतम ज्ञान को छत्रसाल के माध्यम से जानेगा |             आज के दिन कुछ महत्वपूर्ण विचार रखना चाहता हूँ | सोचना यह है, कि कौनसी बड़ी बात घटित हुयी थी संवत १७३५ में? और आज उस घटना की प्रासंगिकता क्या है? हम कहते हैं प्राणनाथ जी का आध्यात्मिक वार्तालाप सभी उपस्थित धर्म सम्प्रदायों के ग्यानी जनों  से हुआ था, जिस में सभीने उनको विजयाभिनन्द बुध्ध निष्-कलंक अवतार के रूप में घोषित किया |  श्री जी की ऐसी कौनसी विशिष्ट बातों से वे प्रभावित हुए होंगें ? तो हम समझते - समझाते आ रहे हैं, रटते - रटाते आ रहे हैं, जो ३४२ साल पहेले जिस ढंग से समझाया गया था, या लिखा गया था - सम्प्रदाय पध्धति, भई नयी रे नव खण्डों आरती एवं हरिद्वार की बीतक आदि के माध्यम से |  हर शाम की आरती के बाद स्व...

आज कल हर कोई कोरोना वाईरस की महामारी से चिंतित है |

आज कल हर कोई कोरोना वाईरस की महामारी से चिंतित है | दूसरी और, युगों युगों से धर्म ग्रन्थ पुकार रहे हैं कि मानव जात के लिए अपने 'निज-आनंद' पर कुल्हाड़ी मारने से बड़ी कोई महामारी नहीं हो सकती! लेकिन पता नहीं क्यों, इस आध्यात्मिक महामारी की चेतावनी को मनुष्य अनसुना कर लेता है !  पता नहीं क्यों मीडिया - सोसिअल मीडिया इस चेतावनी को असरकारक रूप से वायरल नहीं कर पाता!   महामति भी पुकार पुकार कर कह रहे हैं कि ब्रह्म ज्ञान से उत्पन्न "दिव्य प्रेम की वैक्सीन" से मनुष्य के स्वार्थ-अहंकार की महामारी निश्चित मिटेगी | फिर भी कोई नहीं सुन रहा | सुनते भी है, तो अमल नहीं हो पाता | हम जितनी चिंता और उपाय कोरोना की महामारी की करते हैं (और करना भी चाहिए!), कमसे कम उतना प्रयास भी यदि अपने निज-आनंद के लिए कर लें, अपने आप को जल्द से जल्द माया से क्वारंटाइन (अलग) कर लें, तो नित्य निजानंद महा-जीवन उपलब्ध होना निश्चित है | मायारूपी कोरोना वायरस का इन्फेक्शन दिव्य प्रेम की वैक्सीन से रूक जाना निश्चित है |क्या पता,  शायद कोरोना वायरस जैसी इस महामारी का घटित होना हमारी आत्म-जागनी के लिए भी हों!   ब...

Today’s Wani Manthan जीव चंडाल कठन एवो कोरडू, कां रे करो छो हत्यारो | वृथा जनम करो कां साधो, आवो रे आकार कां मारो || लाख चोरासी हत्या बेससे, एवो आ जनम तमारो | बीजी हत्यानों पार नथी, जो ते तमें नहीं संभारो ||

Today's Wani Manthan जीव चंडाल कठन एवो कोरडू, कां रे करो छो हत्यारो | वृथा जनम करो कां साधो, आवो रे आकार कां मारो || लाख चोरासी हत्या बेससे, एवो आ जनम तमारो | बीजी हत्यानों पार नथी, जो ते तमें नहीं संभारो ||             Mahamati alarms, " Listen O the proponents of non-violence! This human life has been gifted with Supreme Wisdom needed to attain freedom from the unending cycle of birth and rebirth. Your Jiva has become rigid, stony and oppressive by undergoing countless life experiences. Why are you up to murdering the present golden opportunity?  Why do you burden yourself and others with confusions of sectarian rituals? O seekers of Truth! Why do you waste your invaluable life ? You shall be definitely held accountable for 8.4 million murders, if you fail to choose the path of divine love for the Supreme!  And Oh! Don't forget to add countless more murders that you may commit during each life you will live! Awake to the Ultimate Reality and start living life of divine l...

खोजी खोजे बाहेर भीतर, ओ अंतर बैठा आप | सत सुपने को पारथीं पेखे, पर सुपना न देखे सख्यात || किर २/५

आज का श्री प्राणनाथ वाणी मंथन खोजी खोजे बाहेर भीतर, ओ अंतर बैठा आप | सत सुपने को पारथीं पेखे, पर सुपना न देखे सख्यात || किरनतन २/५                आत्म-खोजी साधक लोग पर-ब्रह्म (सुप्रीम बीइंग) को या तो इस परिवर्तनशील ब्रह्मांड में या अपने भीतर (पिंड में) खोजते रहते है । स्वप्न बुध्धि के प्रभाव में उन्हें आंशिक अनुभूति पूर्ण नजर आती है और प्रतिबिंबि को ही वे वास्तविकता समझ लेते हैं |                लेकिन वह पर-ब्रह्म तो भीतर में होने वाली अनुभूतियों एवं सृष्टि में बाहर प्रत्यक्ष रूप में होने वाली अनुभूतियों से अलग ही है | वह अपने पूर्ण 'शुध्ध साकार' स्वरुप से उस परमधाम में स्थित है, जहांसे वे यह जगत खेल दिखा रहे हैं | अर्थात, उनका पूर्ण सत-चिद-आनंद, अनंत और स्व-लीला अद्वैत स्वरुप इन सभी अनुभूतियों से बहुत दूर है ।                वास्तविकता तो यह है कि सत्य (नित्य-अस्तित्ववान) ब्रह्मात्माएं इस अवास्तविक सांसारिक स्वप्न को परे से, अर्थात, अपने परमधाम से देख रही हैं |...

Stage decor with eight oceans Toronto shivir

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Stage decor with eight oceans Toronto Shivir

Today’s centering Chopai is: एह जिन बांधे सो खोलहिं, तोलोना छूटे बंध ! एह विध खेल खावंदकी, तो औरों कहाँ सनंध कलस १/३५

Today’s centering Chopai is: एह जिन बांधे सो खोलहिं, तोलोना छूटे बंध ! एह विध खेल खावंदकी, तो औरों कहाँ सनंध  कलस १/३५ Eh Jin baandhe so kholhi , Unless the One who has created the web of world-game plan Himself untangles the complex puzzle of the worldly drama, Toh lon naa chhute bandh l One cannot hope to get out of this great entanglement (mess). Eah vidh khel khaavand ki, Even the revered Devtas, angels, Brahma, Vishnu, Mahesh also are all totally bewildered. None can solve the puzzle of dreamy creation. To auron kahaan sanandh ll Then what to talk of ordinary mortals (humans)! This chopai teaches a few points: 1. Humbleness: Recognizing limitations of our human intellect in fully understanding the universe and the Ultimate Reality. 2. Importance of having immovable rocklike faith that I am the soul of the Supreme Lord who is showing me this world drama. This opens the door of Paramdham Getting into our blissful love state - Nij -Ananda is possible by bu...

Today’s Prannath Wani Manthan

Today's Prannath Wani Manthan: पतिव्रता पणे सेविए, न थाय वेश्या जेम | एक मेलीने अनेक कीजे, तेणी थाय धणवट केम || किरंतन १२८/४४ परमात्मा का सेवन, उन्हें अपनी आत्मा का धणी समझ कर करना चाहिए | उनसे ऐसे अनन्य भाव से प्रेम करना चाहिए, जैसे संसार में एक आदर्श पत्नी अपने पति से करती है | वेश्या की तरह अप्रामाणिक व्यवहार करने से प्रेम का सच्चा सेवन नहीं हो सकता | प्रेम की खोज में जो एक परमात्मा की पहेचान कर के उन पर पूर्ण विश्वाश और श्रध्दा नहीं रखता, और अपने जीवन व्यवहार में जो नाना प्रकार के संसारी प्रलोभनों की परिपूर्ति में ही प्रेम खोजते रहता है, या लौकिक दिखावे का धर्म पालन करके परमात्मा के प्रेम की उपलब्धि का ढोंग करता रहता है, उस को परमात्मा का प्यार कैसे मिल सकता है? जब तक पत्नी (आत्मा) अपने पति रूप (परमात्मा) को अपना दिल पूर्णतः नहीं दे देती, अपना सर्वस्व समर्पण का भाव प्रगट नहीं करती, तब तक उसे अपने धणी की धणवट का, अर्थात, उनकी मेहेर या प्यार की अनुभूति कैसे हो सकती है? English: Pativrata pane seviye, Na thaaye veshya jem | Ek meli ne anek kije, Teni thaay dhanva...

बढ़िया । पतंगोत्सव की शुभ कामना ।

बढ़िया । पतंगोत्सव की शुभ कामना । इसी संदर्भ में एक जागनी प्रयोग हम सब कर सकते हैं : यदि अपने भीतर में ईर्ष्या, प्रमाद, कायरता, डर, मिथ्या अहंकार, लोभ, काम क्रोध, किसी के भी प्रति घृणा , बदले की भावना आदि नकारात्मक भाव होने का आपको स्वीकार है, तो उन सभी को आज अपनी अपनी पतंग पर लिख दीजिए। फिर पतंग को आकाश में उड़ाइए। फिर किसी दूसरे से पेच नहीं लड़ाना है । किसी और की पतंग नहीं काटनी है । बस, अपने हाथ को खुला कर लेना है, पतंग के धागे को हाथ से छोड देना है । फिर देखते रहिए, कि पतंग के साथ साथ ऊस पर लिखे हुए ईर्ष्या, प्रमाद, कायरता, डर, मिथ्या अहंकार, लोभ, काम क्रोध, घृणा आदि सभी नकारात्मक भाव भी आप से दूर दूर उड़ जा रहे हैं । दूर से दूर ....नज़र से ग़ायब हो रहे हैं। आप अपने आप में हल्केपन का एहसास कर रहे है। चेहरे पर ख़ुशियों के आँसू । भीतर का आसमान निर्मल हो रहा है । इसी अवकाश में प्रेम, आनंद, शांति, एकदिली का मोहोल तैयार हो रहा है। अब आप भी - भीतर से बाहर तक - चिल्ला रहे हैं- काटी....काटी...काटी! नकारात्मक एमोसंस की पतंग को अपने आप से काट दी! काट दी! हास...बड़ा अच...