समस्त विश्व को बुध्धजी शाका ३४२ प्रारम्भ की बधाई हो |

समस्त विश्व को बुध्धजी शाका ३४२ प्रारम्भ की बधाई हो |

आतम सम्बन्धी सुन्दरसाथ जी!  आज का दिन हम सब के लिए शुभ इसलिए हैं क्यों कि इस जागनी ब्रह्माण्ड में तारतम ब्रह्मज्ञान का बृहद प्रसार जन समाज में शुरू हुआ | हमें अपार आनंद है, कि छत्रसाल वेब सीरीज भी इस वर्ष संसार को भेंट होगी |  विश्व प्राणनाथ जी को और श्री कुलजम स्वरुप निहित तारतम ज्ञान को छत्रसाल के माध्यम से जानेगा |

            आज के दिन कुछ महत्वपूर्ण विचार रखना चाहता हूँ | सोचना यह है, कि कौनसी बड़ी बात घटित हुयी थी संवत १७३५ में? और आज उस घटना की प्रासंगिकता क्या है? हम कहते हैं प्राणनाथ जी का आध्यात्मिक वार्तालाप सभी उपस्थित धर्म सम्प्रदायों के ग्यानी जनों  से हुआ था, जिस में सभीने उनको विजयाभिनन्द बुध्ध निष्-कलंक अवतार के रूप में घोषित किया |  श्री जी की ऐसी कौनसी विशिष्ट बातों से वे प्रभावित हुए होंगें ? तो हम समझते - समझाते आ रहे हैं, रटते - रटाते आ रहे हैं, जो ३४२ साल पहेले जिस ढंग से समझाया गया था, या लिखा गया था - सम्प्रदाय पध्धति, भई नयी रे नव खण्डों आरती एवं हरिद्वार की बीतक आदि के माध्यम से |  हर शाम की आरती के बाद स्वरुप बोलते हैं - "भई नयी रे नव खण्डों आरती"|  

जिन हद कर नवधा भक्ति - जुदी कर गाई पाई प्रेम जुगत | अनन्य प्रेम लक्षणा भक्ति में नवधा का नकार कहाँ कहा गया है? नवधा से न्यारा अर्थात् विशिष्ट कहा है । जिस ढंग से प्रेम लक्षणा कर रहे हैं, कभी कभी तो नवधा के स्टैण्डर्ड से भी निम्न स्तर की नजर आती है ! इस न्यारेपन को जानना, ऊस पर अमल करना और दूसरोंको ऊस न्यारेपन के बारे में अवगत करना यह सुंदरसाथका धर्म बनता है ।
            वर्तमान समय निश्चित ही शास्त्रार्थ का समय नहीं है । ऊस कभी हुए शास्त्रार्थ के फलोंका रस पीने का यह वक़्त है। धाम धणी को प्रिय भी यही है की अपनी आत्माएँ उनके हिरदय सागर का प्रेम रस पल पल पीती रहें। यह रस पीना क्या है? कैसे पिया जा सकता है?  उनके दिल से अपना दिल जोड़ लेने से ।
दिलों के जूड जाने से उनके दिव्य गुणों का प्रवाह अरसपरस बहने लगता है ।
            ये दिव्य गुण क्या है? उनके दिल का लाड प्यार जो मुख्यतः अष्ट विध से प्रगट होता है, वह है - नूर - परम सत्य, नीर - परम सौंदर्य, खीर - परम एकत्व, दधि - परम शांति, घृत - परम प्रेम, मधु- परम प्रज्ञान, रस - परम सम्बंध सुख दाता, और सर्व रस - परम कृपा, सर्वांगीण प्यार ।
            दिल से दिल का सेतु बने रहने से यह रस निरंतर मिलता रहता है । तारतम वाणी मंथन मात्र पर्याप्त नहीं है । मंथन किया मक्खन खाने से ही रसानंद और निजानंद सम्भव है । यह खाना पीना ध्यान चित्वनि और सेवा समर्पितता से सम्भव है । अकेला ध्यान करते रहना भी पर्याप्त नहीं है । सेवा - तन से, मन से,  उपलब्ध धन सम्पत्ति से होने पर ही मिथ्या अहम का टूटना और धणी की खुदी आना सम्भव है ।
            Whatsapp, विडीओ कॉन्फ़्रेन्स का उपयोग ठीक है । लेकिन हमें जो फ़्री सुबिधा मिलती है, उसका जितना लाभ उठाते हैं, मुफ़्त Whatsapp पर अपने अपने ग्रूप्स - क़रीब ३०-४० ग्रूप्स -चला कर नए ने सम्प्रदाय  फ़िरक़े भी उठ रहे है - यह सब फ़्री मिल रहा गई इसलिए तो हुआ ! जितना फ़्री सेवा का लाभ उठाया, उतना भी धन निस्वार्थता सेवा मैं लगाने की सोचते हैं क्या? सुंदरसाथ समाज सेवा में तन को कितना समर्पित किया ? अपना बेस्ट क्वालिटी समय दूसरों के या समष्टि के सुख हेतु कितना लगाया? मिलने वाली सेवा की व्याजबि क़ीमत चुकाने की जागरूकता, एहसानोको चुकाने जा दर्द, पल पल धन्यवाद भाव की जागृति, ये सभी सेवा के दृष्टांत है साथ्जी ।
            यदि इल्म भीतर की गहराई में पहुँचा है, बुद्धि निर्मल हुई है या हो रही है, तभी निष्कलंकता प्रकाशित होती जाएगी । लेकिन शास्त्रोंकी भविष्यवानियों पर अधिकतर समय शक्ति बर्बाद करने वाला समाज, वर्तमान जागनी समश्याओं को अनदेखा करने की हमारी मानसिकता, वैश्विक घटनाओं को देख कर (दुनिया के अन्य धर्मों की देखा देखी) महाप्रलय की राह देख रहा समाज, भीतरी प्रलय (आत्म जागनी) में कम श्रद्धा रखने वाला समाज, अभी बुद्धजी शाका मनाने को कहाँ सक्षम है?
            हाँ ज़ाहिर में मनाने की शुरुआत तो अच्छी ही है, पर जागरूकतापूर्वक मनाने से ही बुद्धजी का स्वप्न साकार होगा । संसार के प्रति नकारात्मक अभिगम को द्रढ करने वाले, अद्वैत विचार के राजदूत अपने ही अस्तित्व को विभाजित करने तुले हुए है, बार बार माया को अपने बाहर स्थापित करने के मानसिकता बनाए हुए हैं - तो ऐसे साम्प्रदायिक मॉडल को और भी ३४२ वर्ष तक सपोर्ट करते रहेंगे, तो त्रिलोकि के तिमिर का नाश इसलिए कभी नहीं हो सकता | क्योंकि वर्तमान हाल ऐसा है कि बुद्धजी की ज्योति को प्रकाश में न आने देने के प्रयासोंमैं ही ज्यादातर हम लगे हुए है ।
            असत को उड़ा कर सत को स्थापित करने वाले ब्रह्म वाणी रूपी शस्त्र की असरकारिता उन सब सुंदरसाथ पर निर्भर करती है, जो निरुपयोगि परम्पराओं को जड़ मूल से उखाड़ फेंकने को तत्पर हो । बिना आमूल परिवर्तन के जागनी कैसे सम्भव है साथजी?
 
सदाआनंदमंगल में रहिए
सप्रेम प्रणामजी
नरेन्द्र पटेल, लार्ड प्राणनाथ डिवाइन सेण्टर, मैकॉन, USA
श्री प्राणनाथ वैश्विक चेतना अभियान

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