ध्यान से पढ़ें, सोचें और समझें
प्यारे सुंदरसाथजी!
ध्यान से पढ़ें, सोचें और समझें
करोना महामारी के बीच बहुत सारी विविध भविष्य वाणियों की बातें विश्वभर में शेर हो रही है । सुंदरसाथ समाज में भी यह फैल रही है । जो विचारणीय है ।
सर्व प्रथम तो ऐसी बातें किसी भी धर्मग्रंथ या व्यक्तिविशेष द्वारा की गयी हो, हमारी आत्म जागनी में और उपस्थित महामारी के बीच इसकी कोई क़ीमत मुझे नज़र नहीं आती।
हमारे लिए क़ीमत की बात यह है कि हम धनी के इल्म से अपनी बुद्धि को जाग्रत रखें, तन मन धन शक्ति को विवेक पूर्वक जब और जहां भी सम्भव हों, प्रेम सेवा में चैनलायज़ करें । और किसी भी भविष्यवाणियोंके चक्करसे मुक्त रहें !
ऐसी बातें बहुत सारे लोग लम्बे समय से करते आ ही रहे है । और जब भी ऐसी घटना होती है, हर सम्प्रदाय और तीर्थ स्थान वाला अपनी अपनी महिमा बढ़ाने ऐसी बातें मीडियामें प्रवाहित करता ही आया है ।
लेकिन क्या तारतम वाणी में तन, मन, जीव, आत्म स्तर की सेफ़्टी के लिए कम चेतावनियाँ दी गयी है? क्या हम आयी महामारी से भी गम्भीर चेतावनियों से कभी प्रभावित हुए है?
वैज्ञानिकोंने भी समय समय पर ऐसी चेतावनियाँ पक्के प्रूफ़ के साथ दी तो है । पर स्वार्थ और अहम वश मानव समाज और समाज का नेतृत्व इसे अनसुनी करता आ ही रहा है । जब थें सूरज देखिए, लेत अंधेरी घेर...
लेकिन सुन्दरसाथजी, वर्तमान घड़ी तो हमारे हाथ में है ही । ए बल जब तूम किया, तो अलबत्त बल श्री धाम..,.
अतः सामने आयी महामारी से भयभीत हो कर ऐसी बातों को प्रोत्साहन देने से तो अच्छा यह होगा कि पल पल भीतर के प्रेम को इतना बढ़ाते रहें, कि भय को भयभीत कर दें, नियमित योग आसन प्राणायाम द्वारा अपनी रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ायें, ब्रह्मवाणी की उत्साहवर्धक और भययुक्त करने वाली बातों को सब में बाँटे, हर प्रकार की महामारी से मुक्त परामधाम की प्रेम आनंद लीलाओं का और सदा रोगमुक्त किशोर स्वरूपों का चितवन करते रहें, सत्संग चर्चा से भविष्यवानियों की हर नकारात्मक और निरुपयोगी बात बंद कर दें ।
और इस वक़्त मिले अवसर को धन्य कैसे बना सकते हैं , स्वयं की और अन्य की सहायता कैसे कर सकते है इस बात पर ध्यान केंद्रित करें।
*३४२ वाँ बुद्धनिष्कलंक का शाका *मना रहें हैं, तो हर सुंदरसाथ वर्तमान घड़ी को अमृतमय बनाने में कृतिशील बनें ।
सब को यह विश्वास दिलाएँ कि जो प्राणों का नाथ है, उनकी साँसों के साथ अपनी हर साँस को मिलाए रखेंगें तो प्रेम रूपी नित्य जीवन उपलब्ध होना निश्चित है ।
सुंदरसाथजी, कसोटी का वक्त है, अपना कस दिखानेका अवसर है । कसोटी कस देखावहिं!
कस न पाइए कसोटी बिना । तूम तो केसरी सिंग हो...भेड़ों की टोली से अलग रह कर अपना आपा दिखाने का अवसर है ।
छठे दिन में धनीने ज़िम्मेवारी हमें जो सौंपी है, इसे निभाते रहें ।
स्वयं जागें औरोंको जगाएँ
अर्ज़ी के साथ साथ यह
प्रार्थना भी करते रहें:
*मैं सदाआनंदमंगल में रहूँ
हम सब सदाआनंदमंगल में रहें
समस्त सृष्टिजीव सदाआनंदमंगल में रहें*
ऐसी धाम धणी के श्री चरणोंमैं अर्ज़ी करें !
श्री धणीजी को जोश, आत्म दुलहिन,
नूर हुकम बुध मूल वतन ।
ए पाँचों मिल भयी महामत,
वेद कतेबों पहुँची सरत ।।
ये हमारी रक्षा अवश्य करेंगे
सदाआनंदमंगल में रहिए ।
सप्रेमप्रणाम जी
लॉर्ड प्राण नाथ डिवाइन सेंटर
मेकन, जोरजिया, USA
श्री प्राणनाथ वैश्विक चेतना अभियान
ध्यान से पढ़ें, सोचें और समझें
करोना महामारी के बीच बहुत सारी विविध भविष्य वाणियों की बातें विश्वभर में शेर हो रही है । सुंदरसाथ समाज में भी यह फैल रही है । जो विचारणीय है ।
सर्व प्रथम तो ऐसी बातें किसी भी धर्मग्रंथ या व्यक्तिविशेष द्वारा की गयी हो, हमारी आत्म जागनी में और उपस्थित महामारी के बीच इसकी कोई क़ीमत मुझे नज़र नहीं आती।
हमारे लिए क़ीमत की बात यह है कि हम धनी के इल्म से अपनी बुद्धि को जाग्रत रखें, तन मन धन शक्ति को विवेक पूर्वक जब और जहां भी सम्भव हों, प्रेम सेवा में चैनलायज़ करें । और किसी भी भविष्यवाणियोंके चक्करसे मुक्त रहें !
ऐसी बातें बहुत सारे लोग लम्बे समय से करते आ ही रहे है । और जब भी ऐसी घटना होती है, हर सम्प्रदाय और तीर्थ स्थान वाला अपनी अपनी महिमा बढ़ाने ऐसी बातें मीडियामें प्रवाहित करता ही आया है ।
लेकिन क्या तारतम वाणी में तन, मन, जीव, आत्म स्तर की सेफ़्टी के लिए कम चेतावनियाँ दी गयी है? क्या हम आयी महामारी से भी गम्भीर चेतावनियों से कभी प्रभावित हुए है?
वैज्ञानिकोंने भी समय समय पर ऐसी चेतावनियाँ पक्के प्रूफ़ के साथ दी तो है । पर स्वार्थ और अहम वश मानव समाज और समाज का नेतृत्व इसे अनसुनी करता आ ही रहा है । जब थें सूरज देखिए, लेत अंधेरी घेर...
लेकिन सुन्दरसाथजी, वर्तमान घड़ी तो हमारे हाथ में है ही । ए बल जब तूम किया, तो अलबत्त बल श्री धाम..,.
अतः सामने आयी महामारी से भयभीत हो कर ऐसी बातों को प्रोत्साहन देने से तो अच्छा यह होगा कि पल पल भीतर के प्रेम को इतना बढ़ाते रहें, कि भय को भयभीत कर दें, नियमित योग आसन प्राणायाम द्वारा अपनी रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ायें, ब्रह्मवाणी की उत्साहवर्धक और भययुक्त करने वाली बातों को सब में बाँटे, हर प्रकार की महामारी से मुक्त परामधाम की प्रेम आनंद लीलाओं का और सदा रोगमुक्त किशोर स्वरूपों का चितवन करते रहें, सत्संग चर्चा से भविष्यवानियों की हर नकारात्मक और निरुपयोगी बात बंद कर दें ।
और इस वक़्त मिले अवसर को धन्य कैसे बना सकते हैं , स्वयं की और अन्य की सहायता कैसे कर सकते है इस बात पर ध्यान केंद्रित करें।
*३४२ वाँ बुद्धनिष्कलंक का शाका *मना रहें हैं, तो हर सुंदरसाथ वर्तमान घड़ी को अमृतमय बनाने में कृतिशील बनें ।
सब को यह विश्वास दिलाएँ कि जो प्राणों का नाथ है, उनकी साँसों के साथ अपनी हर साँस को मिलाए रखेंगें तो प्रेम रूपी नित्य जीवन उपलब्ध होना निश्चित है ।
सुंदरसाथजी, कसोटी का वक्त है, अपना कस दिखानेका अवसर है । कसोटी कस देखावहिं!
कस न पाइए कसोटी बिना । तूम तो केसरी सिंग हो...भेड़ों की टोली से अलग रह कर अपना आपा दिखाने का अवसर है ।
छठे दिन में धनीने ज़िम्मेवारी हमें जो सौंपी है, इसे निभाते रहें ।
स्वयं जागें औरोंको जगाएँ
अर्ज़ी के साथ साथ यह
प्रार्थना भी करते रहें:
*मैं सदाआनंदमंगल में रहूँ
हम सब सदाआनंदमंगल में रहें
समस्त सृष्टिजीव सदाआनंदमंगल में रहें*
ऐसी धाम धणी के श्री चरणोंमैं अर्ज़ी करें !
श्री धणीजी को जोश, आत्म दुलहिन,
नूर हुकम बुध मूल वतन ।
ए पाँचों मिल भयी महामत,
वेद कतेबों पहुँची सरत ।।
ये हमारी रक्षा अवश्य करेंगे
सदाआनंदमंगल में रहिए ।
सप्रेमप्रणाम जी
लॉर्ड प्राण नाथ डिवाइन सेंटर
मेकन, जोरजिया, USA
श्री प्राणनाथ वैश्विक चेतना अभियान
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