“सत्य वचन” की तीव्रता और उसके प्रति संसार की असहिष्णुता

"सत्य वचन" की तीव्रता और उसके प्रति संसार की असहिष्णुता 

झाझुं कहे दुख सहुने लागे, सत वचन ना सेहेवाय।
 सत सहुए उथापियूं, असत ब्रह्मांड न समाय।।
किरंतन १२५/४१
सांचु कहे दुख लागसे, सांचु ते केहेने न सुहाय। प्रगट कहिए मोंहों ऊपर, त्यारे दोहेला ते सहुने थाय।। किरंतन १२८/५

🌿 किरंतन १२५/४१
"झाझुं कहे दुख सहुने लागे, सत वचन ना सेहेवाय।
सत सहुए उथापियूं, असत ब्रह्मांड न समाय।।"

भावार्थ (संशोधित):
जब कोई तीखा और असहज सत्य बोला जाता है, तो लोगों को वह दुःखद लगता है — वे उसे सह नहीं पाते।
जो सत्य कभी स्पष्ट और उजागर था, उसे ही लोगों ने उल्टा करके ढँक दिया, ताकि उनकी सुविधा और भ्रम बने रहें।
दूसरी ओर, झूठ इतना फैल चुका है, इतना गाढ़ा हो गया है, कि वह ब्रह्मांड में भी समा नहीं पा रहा — वह हर दिशा में उफन रहा है।

संदेश:
यह संसार सत्य से भागता है और झूठ को इतना बढ़ा देता है कि वह अब स्वयं उसके बोझ से दब रहा है। सत्य को तो लोग छुपाते हैं, लेकिन असत्य का ऐसा विस्तार हो गया है कि अब वह सब कुछ निगलने को तत्पर है।
🌿 किरंतन १२८/५
"सांचु कहे दुख लागसे, सांचु ते केहेने न सुहाय।
प्रगट कहिए मोंहों ऊपर, त्यारे दोहेला ते सहुने थाय।।"

भावार्थ (पूर्ववत):
सत्य जब कहा जाता है तो वह बहुतों को दुःखद लगता है; वह उनके मन को नहीं भाता।
अगर किसी को मुँह पर ही वह सत्य स्पष्ट कह दिया जाए, तो वह मोह और अहंकार को चोट पहुँचा देता है — इसलिए सबको वह कटु प्रतीत होता है।

संदेश:
लोग मीठे भ्रम में जीना पसंद करते हैं। जैसे ही कोई आईना दिखाता है, उन्हें लगता है कि उस व्यक्ति ने उन्हें चोट पहुँचाई — जबकि वह तो केवल सत् का दर्पण था।
🔷 संक्षिप्त समग्र व्याख्या:

इन पदों में महामति प्राणनाथ यह कह रहे हैं कि
सत्य को लोग झूठ में बदल देते हैं, उसे ढँक देते हैं,
जबकि असत्य इतना फैल चुका है कि उसे रोका नहीं जा सकता।
जब कोई साहसपूर्वक सत्य कहता है, तो संसार उसका विरोध करता है — क्योंकि यह दुनिया झूठ को स्वीकारती है और सत्य को अस्वीकारती है।

🎙️ भजन: सत्य कहो तो दुख लगे 

चौपाई: 
झाझुं कहे दुख सहुने लागे, सत वचन ना सेहेवाय। सत सहुए उथापियूं, असत ब्रह्मांड न समाय।।किरंतन १२५/४१
सांचु कहे दुख लागसे, सांचु ते केहेने न सुहाय। प्रगट कहिए मोंहों ऊपर, त्यारे दोहेला ते सहुने थाय।। किरंतन १२८/५

राग: यमन
ताल: झपताल (10 मात्रा)
भाव: गंभीर, आत्मचिंतनशील, प्रकाश की खोज
तानपुरा पृष्ठभूमि: C या E, स्थिर और मध्यम स्वर


🎧 (प्रस्तावना स्वर में बोलें — शांत, धीरे, ध्यानपूर्वक)

"यह भजन उन सत्यों की बात करता है,
जो दुनिया को असहज लगते हैं,
जिन्हें कहने वाले को भी पीड़ा सहनी पड़ती है…
पर वही सत्य आत्मा का दीपक हैं…"


🎶 (तानपुरा चालू हो – 4 मातरा ठहराव के बाद गाना शुरू करें)

🎵 ध्रुवपद (मुखड़ा):
सत्य कहो तो दुख लगे,
मन से न वह भाए।
उलट दिया सत् को जगत ने,
छल में सब लुभाए।।
(प्रत्येक पंक्ति झपताल के 10 मात्रा में धीमी गति से लें — 2+3+2+3)


🎵 अंतरा 1:
जग ने सत्य छुपा दिया,
झूठ किया पहरावा।
ब्रह्मांड में असत्य फूला,
नहीं उसे अब ठाँवा।।

(अंतरे की दूसरी पंक्तियाँ थोड़ी गहराई से, जैसे चेतावनी दे रही हों)


🎵 अंतरा 2:
मुँह पर बोले सत्य जब,
चुभता तीर समान।
मोह अहं को चोट लगे,
बन जाए अपमान।।

(यहाँ शब्द "चुभता तीर समान" पर थोड़ा विराम दें)


🎵 अंतरा 3:
जो दिखाए दर्पणों में,
उन पर चले प्रहार।
जो जग को जगाए गहरी,
उनको मिले दुत्कार।।

("जग को जगाए गहरी" पर स्वर को थोड़ी करुणा दें)


🎵 समापन:
सुन तारतम की वाणी अब,
फोड़ तमस की गाँठ।
महामति ने जो सत्य बोला,
वह ही सच्ची बात।।

("महामति ने जो सत्य बोला" – इस पंक्ति को भाव और आदर से गायें)


🧘 (समापन वाक्य)

"सत्य कड़वा हो सकता है…
पर वही जीवन का अमृत है।
महामति की वाणी हमें भीतर का प्रकाश देती है।
उससे न भागें… उसमें प्रवेश करें…"


🎶 भजन रूपांतरण (राग यमन, झपताल)

भाव: सत्य की कटुता और असत्य की व्यापकता
ताल: झपताल (2+3+2+3)
राग: यमन


अंतरा १:

🎵
सत्य कहो तो दुख लगे,
मन से न वह भाए।
उलट दिया सत् को जगत ने,
छल में सब लुभाए।। (ध्रुवपद)


अंतरा २:

🎵
जग ने सत्य छुपा दिया,
झूठ किया पहरावा।
ब्रम्हांड में असत्य फूला,
नहीं उसे अब ठाँवा।।


अंतरा ३:

🎵
मुँह पर बोले सत्य जब,
चुभता तीर समान।
मोह अहं को चोट लगे,
बन जाए अपमान।।


अंतरा ४:

🎵
जो दिखाए दर्पणों में,
उन पर चले प्रहार।
जो जग को जगाए गहरी,
उनको मिले दुत्कार।।


अंतरा ५ (समापन):

🎵
सुन तारतम की वाणी अब,
फोड़ तमस की गाँठ।
महामति ने जो सत्य बोला,
वह ही सच्ची बात।।
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