मसालों का तारतम्य
मसालों का तारतम्य
श्री सुन्दरसाथ जी, जैसा कि हम जानते हैं, जगत में मसाले (यानि स्वाद, रंग, गंध, और रूप को रचने वाले साधन) अनेक प्रकार के होते हैं। पर "मसाले" का अर्थ केवल रसोई तक सीमित नहीं है — हमारे भाव, संवेदनाएँ, वस्तुएँ, तन-मन-धन, संपत्ति, संबंध, और ज्ञान — ये सभी किसी न किसी रूप में "मसालों" की ही अभिव्यक्तियाँ हैं।
जीवन व्यवहार में इन सबका अपना-अपना स्थान है। ये हमारे अनुभवों को रसमय बनाते हैं और परात्मिक स्तर के आनंद की झलक देने में बड़े ही सहायक होते हैं।
तारतम वाणी भी इन भिन्न-भिन्न मसालों की चर्चा करती है — चाहे वे संसार के हों या परमधाम के। हर मसाला, हर प्रतीक, अपने स्थान पर महत्वपूर्ण है। लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है जब हम किसी एक मसाले में लिप्त होकर उसे ही सब कुछ मान बैठते हैं, और शेष मसालों की उपेक्षा करने लगते हैं। यही माया का जाल है — टुकड़ों में उलझ जाना, समग्र को भूल जाना।
🔹 तारतम्य क्या है?
पाताल से परमधाम तक, हुक्म का तारतम्य, ज्ञान का तारतम्य, संबंध का तारतम्य, दुख-सुख का तारतम्य, और प्रेम का तारतम्य — ये सब हमारे आत्मविकास की श्रृंखला के अंग हैं। आज हम "मसालों के तारतम्य" की बात करेंगे — श्रीमुख वाणी के आलोक में।
१. संसार के मसालों से परमधाम अर्स समझाना:
"जो कुछ इस जगत में कहा, देखा, और भोगा गया — वह केवल संकेत मात्र है, वास्तविक परमधाम तो उन सब से परे है।"
किया हुकमें बरनन अर्स का, पर दृष्ट मसाला इत का। एक हरफ लुगा पोहोंचे नहीं, लग अर्स चीज बका।।सिंगार ४/५
मैं सोभा बरनों इन जुबां, ले मसाला इत का। सो क्यों पोहोंचे इन सांई को, जो बीच अर्स बका।।सागर ६/११२
ए बरनन अर्स अंग होत है, ले मसाला इतका। ताथें किन बिध रूह कहे, ना जुबां पोहोंचे सब्द बका।।सिंगार ११/१५
रूप रंग इत क्यों कहिए, ले मसाला इत का। ए सुकन सारे फना मिने, हक अंग अर्स बका।।सिंगार२१/५६
ए जो बातून गुन हक दिल में, सो क्यों आवे मिने हिसाब। ए दृष्ट मन जुबां क्या कहे, ए जो मसाला ख्वाब।।सिंगार ११/३४
यहाँ "दृष्ट मसाले" का उपयोग केवल उस अव्यक्त अर्स की झलक भर देने के लिए किया गया है — वह न तो वर्णन में आता है, न ही इंद्रियों की सीमा में।
२. अर्स के मसाले से अर्स समझाना:
"परमधाम की दिव्यता को समझाने के लिए वाणी स्वयं अर्स के ही मसालों का प्रयोग करती है — ताकि रूहें जागें और उस सुख की पहचान करें।"
महामत कहे बोलूं हुकमें, अर्स मसाला ले।
दरगाही रूहन को, सुख असल देने के।। (सिंगार ११/८६)
हक हुकमें सब मिलाइया, अर्स मसाला पूरन।
हादी रूहों जगावने, करावने हक बरनन।। (सिनगार २/१३)
रंग रेसम जवेर जो देखत, सो सब मसाला नंग। वस्तर भूखन सब नंगों के, माहें अनेक देखावें रंग।।सिंगार १७/२०
ग्रन्थसिनगारप्रकरण21चौपाई क्रमांक69
चौपाई जीव जल थल या जानवरों, कई केसों परन। रंग खूबी देख विचार के, ले अर्स मसाला इन।।६९।।
यहाँ अर्स के मसाले — रंग, रेशम, जवाहरात — भी माध्यम मात्र हैं, उन भावों को जगाने के जो शब्दातीत हैं।
३. सखियों के मनोभावों से परमधाम लीला रचाना:
"परमधाम की सेवा लीला — सखियों के सौंदर्य, सौम्यता और सौजन्य से सजीव होती है। वहाँ प्रेमपूर्ण मसाले एक-दूसरे को अर्पित किए जाते हैं, जैसे आत्माएं परस्पर अर्पित हो रही हों।"
मसाला समार समार के लेवें, सखी एक दूजी को देवें। डेढ़ पोहोर चढ़ते दिन, बीड़ी वाली सैयां सबन।। (परिक्रमा ३/१०४)
यह लीला सिखाती है कि आनंद की सृष्टि सखीभाव, सेवा और सौंदर्य के तालमेल से होती है।
४. जागनी लीला में सेवा रूपी मसाले:
"जागनी लीला में, परमधाम की स्मृति से प्रेरित होकर, सखियाँ संसार के अनेकों साधनों को सेवा का माध्यम बनाकर, प्रेम और समर्पण से प्रियतम धनी को रिझाती हैं।"— यह बाह्य कार्य नहीं, बल्कि अंतरंग संबंध की जीवंत अभिव्यक्ति है, जो धनी को रिझाने का मधुर प्रयास है।"
सुई तागा कोकड़ी, और केतेक सुए बड़े।
अजमा सोंठ पीपर, मसाला गंधियान केते।। (बीतक ६८/७०)
कोई वस्त अरूगावने, मसाला ल्यावें घर से।
मेवा मिठाई पकवान, राज हेतु कर आरोगते।। (बीतक ६८/१६)
इन सेवा-मसालों का उद्देश्य है — प्रेमभाव से रची सेवा जो परमात्मा को प्रिय लगे।
पूर्ण जागनी = मसालों का तारतम्य जान लेना
जब संसार के मसालों से परमधाम की अनुभूति हो, जब अर्स के मसालों से अर्स की दिव्यता का बोध हो, जब सखियों के भावों से लीला का रस झरे, और जब जागनी लीला में हर वस्तु - तन, मन, धन आदि) सेवा का माध्यम बन जाए — तब मसालों का तारतम्य घटित होता है। तब यह क्षण, परमधाम के क्षण से जुड़ जाता है।
यदि उपरोक्त चार प्रकार में से कोई एक भी प्रकार का मसाला छूट जाए, तो आनंद में वह सम्पूर्णता नहीं रह जाती। इन चारों मसालों को जोड़ कर इस क्षण को परमधाम की क्षण से जोड़ने की कला जानना, प्रयोग करते रहना - ये चारों सुख जागनी लीला का सर्वाधिक आनंद प्रदान करते हैं।
समग्र बनाम टुकड़े:
जागनी की कई कक्षाएँ हैं। लेकिन पूर्ण जागनी वहीं है जहाँ सभी मसाले जुड़कर समग्र रस बनाते हैं। एक भी कड़ी टूटी, तो उस रस की डोरी भी टूट सकती है। इसीलिए, अपने भावों, ज्ञान, संवेदना, और सेवा — सबका आपस में तारतम्य (inner harmony) अत्यंत आवश्यक है।
व्रज, वृन्दावन और परमधाम के मसाले:
परे से परे से परे से परे होने के लिए व्रज मंडल के मसाले, रास वृन्दावन के मसाले, परमधाम के मसाले, परमधाम लीला भावों के मसाले - ये सभी वर्तमान जागनी लीला में हमारे क्षण क्षण सेवा भाव रूपी मसाले से क्रमबद्ध जुड़े हुए होते हैं। यह समझना बहुत जरूरी है।
जब व्रज के प्रेम, वृन्दावन के रास लीला का प्रेम, परमधाम के प्रेमानंद भाव, और जागनी लीला में प्रेम सेवा — यह सब जीवन में क्षण-क्षण समाहित हो जाते हैं, तभी घटित होता है इंद्रावती जी का महास्वप्न —
इतहीं बैठे घर जागे धाम,
पूरन मनोरथ हुए सब काम।
धनी महामत हँस ताली दे,
साथ उठा हँसता सुख ले।। (प्रकाश हीं ३७/११८)
अंत में: मसालों का तारतम्य = जीवन की विविधता में दिव्यता का अनुभव करना। जहाँ हर मसाला, चाहे सांसारिक हो या आत्मिक, परमधाम की ओर मोड़ने वाला माध्यम बन जाए।
सदा आनंद मंगल में रहिए।
Comments
Post a Comment